Saturday 13 July, 2013

अर्ज़ किया है.....

अब नहीं अटकता दिल दुपट्टे में
उम्र का अपना तकाज़ा होता है

-------------

कहां तो मुश्किल था लम्हा तेरे बगैर
कहां गुज़ार दी देख ज़िंदगी हमने

--------------

ज़ायका बिगाड़ गया सब्र का फल
हमने तो सुना था मीठा होता है

-----------------------

अपने बदरंग लिबासों की फिक्र कौन करे
बे-पर्दा रूह का जब एहतराम हो निगाहों में

-----------------------

वादों का टूटना तो सुना था अक्सर शेख
आजकल कोशिशें भी कामयाब नहीं होतीं

----------------------

ए पारस सा मिज़ाज़ रखने वाले
मैं संग सही छूकर मुझे नवाज़ दे

-----------------------


 "इक हसीं हमसफ़र की तौफ़ीक दे दे
 मैंने कब तुझसे हरम मांगा है"

हरम-ऐशगाह
------------------

"मैं आज तेरा हमसफ़र ना सही
 कभी हम दो कदम साथ चले थे"

------------------

"गर तू खुद को दानां समझता है
 पढ़ मेरी आंखों में मेरे दिल को"

दाना-बुद्धिमान
-----------------

"तुम मेरे नक्शे-पा मिटाते हुए चलना
 कोई और ना मेरे बाद कांटों से गुज़रे"

-------------------

"अदब-औ-मुहब्बत से मिलो सबसे
 जाने कौन सी मुलाकात आखिरी हो"

-----------------------------------

"ये कैसा अहद अब आ गया है शेख
 मुहब्बत रस्म अदायगी सी लगती है"


-----------------------

"हाथ ताउम्र खाशाक से भरे रहे
 गौहर भी मिले तो यकीं नहीं होता"

खाशाक=कूड़ा-करकट 
गौहर=मोती

----------------

"मुफ़लिसों को थी चांदनी की जुस्तजू
 रसूख़दारों ने महे-कामिल कैद कर लिया"

महे-कामिल=पूर्ण चंद्र
जुस्तजू-इच्छा;अभिलाषा

------------------

"हर कोई निगाहों से गिरा देता है
 अदने से अश्क की बिसात ही क्या"


---------------------

"खास होने की जद्दोजहद में लगे हैं सभी
 इतना आसां भी नहीं है आम होना"

----------------------

"कद का बातों पे हुआ कुछ ऐसा असर
 हमारी सब फिज़ूल, उनकी उसूल हुईं।"

----------------

"जाने इस नस्ल का अब क्या होगा
 सियासत रिश्तों में जज़्ब हुई जाती है"

जज़्ब-समाना
---------------------

ये कैसा अहद अब आ गया है शेख
मुहब्बत रस्म अदायगी सी लगती है

-----------------

जोड़-घटाना अशआरों में कीजिए
इंसा तरमीम को राज़ी नहीं होते

----------------

हमने ज़रा कहा तो तिलमिला गए
लोगों को सच की आदत जो नहीं

----------------

खास होने की जद्दोजहद में लगे हैं सभी
इतना आसां भी नहीं है आम होना

----------------------

"कद का बातों पे हुआ कुछ ऐसा असर
 हमारी सब फिज़ूल, उनकी उसूल हुईं।"

-------------------

आसान मश्गला ना समझो अशआरों को गढ़ लेना
सौ बार तराशे जाते हैं ये दिल में उतरने से पहले


मश्गला-कार्य
अशआर-काव्य पंक्तियां

-हेमन्त रिछारिया
----------------