Wednesday 8 October, 2008

गज़ल

रो रो कर हर लमहा ज़ाया नहीं करते
दोस्तों को बारहा आज़माया नहीं करते

उनके वादे पे यकीं कैसे मैं करूं
खूब जानता हूं वो निभाया नहीं करते

गुलों के साथ बागों में खार भी हैं
यूं यकलख्त दामन लहराया नहीं करते

ज़मीं पे पडा क्या सोचता है नादां
गिराने वाले कभी उठाया नहीं करते

Thursday 25 September, 2008

आसरा

तेरे आसरे पे जिए जा रहा हूं
ज़हर ज़िंदगी का पिए जा रहा हूं


मुझे ज़िंदगी से अदावत नहीं है
समझौता गम से किये जा रहा हूं


पल जो खुशियों के उधार हैं मुझपे
वो कर्ज़ पुराना दिए जा रहा हूं


तेरी चश्मे-पुरनम बता ये रही हैं
कोई दुखती रग मैं छुए जा रहा हूं


रुसवा कहीं कोई कर दे ना तुझको
हर इल्ज़ाम सर पे लिए जा रहा हूं

बेखुदी

हम क्या लाए; क्या हमारा था
बेखुदी का ये सब नज़ारा था

यकलखत ठिठक गए खुद ही
वर्ना किसने हमें पुकारा था

कब सोचा था यूं तकदीर रूठ जाएगी
कश्ती डूबी जहाँ पास ही किनारा था

देखो रौंदा महकते गुल को ज़ालिम ने

अपने हाथों से किसी ने इसे संवारा था


यही सोच कर जा रहा हूं मुल्के-अदम

बिन तेरे जीना किसे गवारा था

Monday 22 September, 2008

अपने निशां

हस्ती भले मिट जाये जहाँ से
याद रहें हम अपने निशां से

शाख से टूटें पर पर ना बिखरें
महकें सदा गुलशन की फिज़ां से

याद हमारी यूं हो हर दिल में
ज्योंं रोशन महफिल हो शमां से

ऐसे जनाज़ा निकले अपना
जैसे विदा डोली हो मकां से

Wednesday 21 May, 2008

....कौन है?

सतह से ही अंदाज़ा लगा लेतें हैं
गहराईयों को अाज देखता कौन है

वो तू था जिसने दामन तर किया
वरना बहते अश्कोंं को पोंंछता कौन है

आंखे देखीं तो समझ में आया मुझको
दिल के राज़ आखिर खोलता कौन है

इक तेरी याद ही जाती नहीं दिल से
रोज़ो-शब तेरे बारे में सोचता कौन है

आज तलक इसी कश्मकश में हूं
रात के दूसरे पहर बोलता कौन है

Tuesday 20 May, 2008

रात भर दामिनी

रात भर दमिनी यूं दमकती रही
तिश्ना रूहें मिलन को तरसती रहीं

सोचता मैं रहा गुफ्तगू क्या करूं
वो भी चिलमन में बैठी लरज़ती रही

कुछ ऐसा लगा जब वो ज़ुल्फ़ें खुलीं
जैसे बागोंं में कलियां चटकती रहीं

जुदा हो के जागे ह्म शब तलक
वो भी बेचैन करवट बदलती रही

Friday 16 May, 2008

मेरी तकदीर मुझे

मेरी तकदीर मुझे धोखा दे गई होगी
तू अपनी दुआओ पे शक ना कर

जब उमडी है बरस के ही दम लेगी
तू इन काली घटाओ पे शक ना कर

दमन ज़रा थाम मज़बूती से ए सनम
तू इन मगरूर फिज़ाओ पे शक ना कर

हालात बेवफाई कर रहे हो मुझसे
तू अपनी वफाओ पे शक ना कर

लब गर खुल जाते

लब गर खुल जाते तो तेरी रुसवाई होती बहुत
ह्मने अश्क छिपा लिये जगहंसाई होती बहुत

थोडा ही सही मगर खुदा का खोफ़ तो है
वरना इस जहान मे तानाशाही होती बहुत

रोज़ो शब यादो का मेला लगा रह्ता है
नही तो मेरे घर मे तन्हाई होती बहुत

मेरे इश्क की डोर इतनी नाज़ुक नही सनम
मह्सूस तुझे होता गर आज़माई होती बहुत