Thursday 25 September, 2008

आसरा

तेरे आसरे पे जिए जा रहा हूं
ज़हर ज़िंदगी का पिए जा रहा हूं


मुझे ज़िंदगी से अदावत नहीं है
समझौता गम से किये जा रहा हूं


पल जो खुशियों के उधार हैं मुझपे
वो कर्ज़ पुराना दिए जा रहा हूं


तेरी चश्मे-पुरनम बता ये रही हैं
कोई दुखती रग मैं छुए जा रहा हूं


रुसवा कहीं कोई कर दे ना तुझको
हर इल्ज़ाम सर पे लिए जा रहा हूं

बेखुदी

हम क्या लाए; क्या हमारा था
बेखुदी का ये सब नज़ारा था

यकलखत ठिठक गए खुद ही
वर्ना किसने हमें पुकारा था

कब सोचा था यूं तकदीर रूठ जाएगी
कश्ती डूबी जहाँ पास ही किनारा था

देखो रौंदा महकते गुल को ज़ालिम ने

अपने हाथों से किसी ने इसे संवारा था


यही सोच कर जा रहा हूं मुल्के-अदम

बिन तेरे जीना किसे गवारा था

Monday 22 September, 2008

अपने निशां

हस्ती भले मिट जाये जहाँ से
याद रहें हम अपने निशां से

शाख से टूटें पर पर ना बिखरें
महकें सदा गुलशन की फिज़ां से

याद हमारी यूं हो हर दिल में
ज्योंं रोशन महफिल हो शमां से

ऐसे जनाज़ा निकले अपना
जैसे विदा डोली हो मकां से