"इक हसीं हमसफ़र की तौफ़ीक दे दे
मैंने कब तुझसे हरम मांगा है"
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"मैं आज तेरा हमसफ़र ना सही
कभी हम दो कदम साथ चले थे"
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"गर तू खुद को दानां समझता है
पढ़ मेरी आंखों में मेरे दिल को"
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"तुम मेरे नक्शे-पा मिटाते हुए चलना
कोई और ना मेरे बाद कांटों से गुज़रे"
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"अदब-औ-मुहब्बत से मिलो सबसे
जाने कौन सी मुलाकात आखिरी हो"
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"ये कैसा अहद अब आ गया है शेख
मुहब्बत रस्म अदायगी सी लगती है"
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"हाथ ताउम्र खाशाक से भरे रहे
गौहर भी मिले तो यकीं नहीं होता"
खाशाक=कूड़ा-करकट
गौहर=मोती
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"मुफ़लिसों को थी चांदनी की जुस्तजू
रसूख़दारों ने महे-कामिल कैद कर लिया"
महे-कामिल=पूर्ण चंद्र
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"हर कोई निगाहों से गिरा देता है
अदने से अश्क की बिसात ही क्या"
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"जोड़-घटाना अशआरों में कीजिए
इंसा तरमीम को राज़ी नहीं होते"
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"हमने ज़रा कहा तो तिलमिला गए
लोगों को सच की आदत जो नहीं"
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"खास होने की जद्दोजहद में लगे हैं सभी
इतना आसां भी नहीं है आम होना"
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"कद का बातों पे हुआ कुछ ऐसा असर
हमारी सब फिज़ूल, उनकी उसूल हुईं।"
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"जाने इस मुल्क का अब क्या होगा
सियासत रिश्तों में जज़्ब हुई जाती है"
-हेमन्त रिछारिया
मैंने कब तुझसे हरम मांगा है"
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"मैं आज तेरा हमसफ़र ना सही
कभी हम दो कदम साथ चले थे"
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"गर तू खुद को दानां समझता है
पढ़ मेरी आंखों में मेरे दिल को"
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"तुम मेरे नक्शे-पा मिटाते हुए चलना
कोई और ना मेरे बाद कांटों से गुज़रे"
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"अदब-औ-मुहब्बत से मिलो सबसे
जाने कौन सी मुलाकात आखिरी हो"
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"ये कैसा अहद अब आ गया है शेख
मुहब्बत रस्म अदायगी सी लगती है"
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"हाथ ताउम्र खाशाक से भरे रहे
गौहर भी मिले तो यकीं नहीं होता"
खाशाक=कूड़ा-करकट
गौहर=मोती
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"मुफ़लिसों को थी चांदनी की जुस्तजू
रसूख़दारों ने महे-कामिल कैद कर लिया"
महे-कामिल=पूर्ण चंद्र
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"हर कोई निगाहों से गिरा देता है
अदने से अश्क की बिसात ही क्या"
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"जोड़-घटाना अशआरों में कीजिए
इंसा तरमीम को राज़ी नहीं होते"
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"हमने ज़रा कहा तो तिलमिला गए
लोगों को सच की आदत जो नहीं"
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"खास होने की जद्दोजहद में लगे हैं सभी
इतना आसां भी नहीं है आम होना"
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"कद का बातों पे हुआ कुछ ऐसा असर
हमारी सब फिज़ूल, उनकी उसूल हुईं।"
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"जाने इस मुल्क का अब क्या होगा
सियासत रिश्तों में जज़्ब हुई जाती है"
-हेमन्त रिछारिया