सतह से ही अंदाज़ा लगा लेतें हैं
गहराईयों को अाज देखता कौन है
वो तू था जिसने दामन तर किया
वरना बहते अश्कोंं को पोंंछता कौन है
आंखे देखीं तो समझ में आया मुझको
दिल के राज़ आखिर खोलता कौन है
इक तेरी याद ही जाती नहीं दिल से
रोज़ो-शब तेरे बारे में सोचता कौन है
आज तलक इसी कश्मकश में हूं
रात के दूसरे पहर बोलता कौन है
Wednesday 21 May, 2008
Tuesday 20 May, 2008
रात भर दामिनी
रात भर दमिनी यूं दमकती रही
तिश्ना रूहें मिलन को तरसती रहीं
सोचता मैं रहा गुफ्तगू क्या करूं
वो भी चिलमन में बैठी लरज़ती रही
कुछ ऐसा लगा जब वो ज़ुल्फ़ें खुलीं
जैसे बागोंं में कलियां चटकती रहीं
जुदा हो के जागे ह्म शब तलक
वो भी बेचैन करवट बदलती रही
तिश्ना रूहें मिलन को तरसती रहीं
सोचता मैं रहा गुफ्तगू क्या करूं
वो भी चिलमन में बैठी लरज़ती रही
कुछ ऐसा लगा जब वो ज़ुल्फ़ें खुलीं
जैसे बागोंं में कलियां चटकती रहीं
जुदा हो के जागे ह्म शब तलक
वो भी बेचैन करवट बदलती रही
Friday 16 May, 2008
मेरी तकदीर मुझे
मेरी तकदीर मुझे धोखा दे गई होगी
तू अपनी दुआओ पे शक ना कर
जब उमडी है बरस के ही दम लेगी
तू इन काली घटाओ पे शक ना कर
दमन ज़रा थाम मज़बूती से ए सनम
तू इन मगरूर फिज़ाओ पे शक ना कर
हालात बेवफाई कर रहे हो मुझसे
तू अपनी वफाओ पे शक ना कर
तू अपनी दुआओ पे शक ना कर
जब उमडी है बरस के ही दम लेगी
तू इन काली घटाओ पे शक ना कर
दमन ज़रा थाम मज़बूती से ए सनम
तू इन मगरूर फिज़ाओ पे शक ना कर
हालात बेवफाई कर रहे हो मुझसे
तू अपनी वफाओ पे शक ना कर
लब गर खुल जाते
लब गर खुल जाते तो तेरी रुसवाई होती बहुत
ह्मने अश्क छिपा लिये जगहंसाई होती बहुत
थोडा ही सही मगर खुदा का खोफ़ तो है
वरना इस जहान मे तानाशाही होती बहुत
रोज़ो शब यादो का मेला लगा रह्ता है
नही तो मेरे घर मे तन्हाई होती बहुत
मेरे इश्क की डोर इतनी नाज़ुक नही सनम
मह्सूस तुझे होता गर आज़माई होती बहुत
ह्मने अश्क छिपा लिये जगहंसाई होती बहुत
थोडा ही सही मगर खुदा का खोफ़ तो है
वरना इस जहान मे तानाशाही होती बहुत
रोज़ो शब यादो का मेला लगा रह्ता है
नही तो मेरे घर मे तन्हाई होती बहुत
मेरे इश्क की डोर इतनी नाज़ुक नही सनम
मह्सूस तुझे होता गर आज़माई होती बहुत
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