Monday 16 February, 2009

क्यूं मेरे अश्क....

क्यूं मेरे अश्क रुकने का नाम नहीं लेते
करते हैं गम ज़ाहिर सर इल्ज़ाम नहीं लेते

बडा अजीब है इस बाज़ार का आलम
दर्द बेचते लोग कोई दाम नहीं लेते

कैसा प्यार मुझसे कैसी ये वफाएँ हैं
जाने के बाद मेरे मेरा नाम नहीं लेते

हमने तो सजदे किए कदम-दर-कदम
वो अपनी नज़रों का सलाम नहीं देते

एतबार

वादे पे हमने आपके किया था एतबार
हर दर-ओ-दरीचे पे किया था इंतज़ार

हर सूं खिज़ां को देख मुझे तो ये लगा
दामन जैसे आपके लिपटी हो ये बहार

दस्ते-सबा ने जब उलट दिया नकाब
लोगों ने दुआ मांगी हो खैर परवरदिगार

मैं उनकी गली से दिल थामे गुज़रता हूं
खुदा जाने हो जाए किस कदम दीदार

वो अपनी ज़ुल्फों को नहीं छोडते खुला
बयानाते-वाइज़ों में बे-खुशबू है बयार

Saturday 14 February, 2009

अश्क आँखों में फिर

अश्क आँखों में फिर लहराने लगे
भूले बिसरे वो दिन याद आने लगे

जब भी छेडा हमें चाँदनी रात ने
उनकी यादों से दिल बहलाने लगे

होती है अब खलिश सुनकर जिसे
देखिए वो गजल आप गाने लगे

ये जिंदगी क्या एक मेहमां सी है
मेरे कातिल मुझे समझाने लगे

भूल वो चुके ख्वाबे-गरां मानकर
बस हमें भूलने में जमाने लगे

जिंदगी

जिंदगी से अब कोई प्यार ही नहीं
किसी खुशी पे एतबार ही नहीं

पलकें गिरा चिराग गुल कर दिए
अब किसी का इंतजार ही नहीं

पहलू में दर्दे-दिल लिए भटक रहा है नादां
बाजार में तेरे गम का खरीददार ही नहीं

दहलीज पे मयखानों की जाते हो रोजो-शब
चढकर जो उतर जाए वो खुमार ही नहीं

हमने दिल बिछाया था कदमों तले उनके
आसानी से वो कह चले मैं यार ही नहीं

सादगी से तेरे इश्क में जो मरकर चला गया
उस आशिक का तेरे शहर में मजार ही नहीं

झूठ के इस दौर में करता हूं बयाँ सच
लगता है कोई मुझसा गुनेहगार ही नहीं

चोट कभी गर तुम...

चोट कभी गर तुम खा जाओ
जख्मों को खुद ही सहलाओ

वो छेडेंगे इन जख्मों को
गैरों को तुम ना दिखलाओ

कौन बना है किसका साथी
अपना दिल खुद ही बहलाओ

चाक करेंगे वो छूकर भी
कांटों से ना प्यार जताओ

वक्त को फिर तुम सुलझा लेना
पहले उलझी लट सुलझाओ