Friday 4 May, 2018

ग़ज़ल

(साभार:वेब)

जाने कैसी-कैसी बातों में गए,
लोग मज़हबी छलावों में गए।

रूह में झांकने का तो है वक्त कहां
नादां लिबास के दिखावों में गए।

मुहब्बत के पैगाम रुके कहां हैं शेख
देखिए ये ख़त किताबों में गए

इस दौर के बयानों की क्या कहें
दिए नहीं जो; रिसालों में गए

ऐसी अदा से देखा सवाल खो गए
जवाब सारे उन निगाहों में गए

-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया

4/05/2018
9:28 AM

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