बेखुदी का ये सब नज़ारा था
यकलखत ठिठक गए खुद ही
वर्ना किसने हमें पुकारा था
कब सोचा था यूं तकदीर रूठ जाएगी
कश्ती डूबी जहाँ पास ही किनारा था
देखो रौंदा महकते गुल को ज़ालिम ने
अपने हाथों से किसी ने इसे संवारा था
यही सोच कर जा रहा हूं मुल्के-अदम
बिन तेरे जीना किसे गवारा था
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