Wednesday 8 October, 2008

गज़ल

रो रो कर हर लमहा ज़ाया नहीं करते
दोस्तों को बारहा आज़माया नहीं करते

उनके वादे पे यकीं कैसे मैं करूं
खूब जानता हूं वो निभाया नहीं करते

गुलों के साथ बागों में खार भी हैं
यूं यकलख्त दामन लहराया नहीं करते

ज़मीं पे पडा क्या सोचता है नादां
गिराने वाले कभी उठाया नहीं करते

1 comment:

योगेन्द्र मौदगिल said...

nirantarta zaroori hai bhai
filhaal badhai....