Saturday 14 February, 2009

चोट कभी गर तुम...

चोट कभी गर तुम खा जाओ
जख्मों को खुद ही सहलाओ

वो छेडेंगे इन जख्मों को
गैरों को तुम ना दिखलाओ

कौन बना है किसका साथी
अपना दिल खुद ही बहलाओ

चाक करेंगे वो छूकर भी
कांटों से ना प्यार जताओ

वक्त को फिर तुम सुलझा लेना
पहले उलझी लट सुलझाओ

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