तिश्नगी
Ghazals by Hemant Richhariya
Saturday 14 February, 2009
चोट कभी गर तुम...
चोट कभी गर तुम खा जाओ
जख्मों को खुद ही सहलाओ
वो छेडेंगे इन जख्मों को
गैरों को तुम ना दिखलाओ
कौन बना है किसका साथी
अपना दिल खुद ही बहलाओ
चाक करेंगे वो छूकर भी
कांटों से ना प्यार जताओ
वक्त को फिर तुम सुलझा लेना
पहले उलझी लट सुलझाओ
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment