क्यों हिन्दू-मुसलमान हुआ जाए
लाज़िसी है अब इंसान हुआ जाए
बन सकते हैं जब दिलों का सुकूं
क्यों दर्द का सामान हुआ जाए
टकरा रहीं हैं आपस में सरहदें
चलों यारों आसमान हुआ जाए
आओ हकीकत की तस्दीक करें
कौन तीर;कौन कमान हुआ जाए
लहू से खेलना दरिन्दों का काम है
कभी आदम की पहचान हुआ जाए
मरासिमों की लाशें जलाए हरदम
मेरा ये दिल श्मशान हुआ जाए
खुदा के वास्ते चुप भी रहिए दानां
खूबसूरत शहर वीरान हुआ जाए
-हेमन्त रिछारिया
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