Sunday 27 July, 2014

अर्ज़ किया है...

“मासूम हाथों से निवाला खा लिया
 रोज़ा टूटा; मगर दिल बचा लिया”

“तुम चाहे मुहब्बत कह लो इसे
 आदत हो गई है तुम्हारी मुझे”

“ना जाने कैसा रिश्ता है तेरा मुझसे
 नामुकम्मल लगती है ज़िंदगी तेरे बगैर”

“अपने हाथों से जब वो इफ़्तार कराता है
 कौन है जो मुंह से निवाला छीन ले”

“जंग ऐसी भी हुई हैं ज़िंदगी में उनसे
 हार से मेरी उनकी जीत शर्मसार है”

“मेरी आंखों में तो आए नहीं कभी
 सुना है खुशी के आंसू भी होते हैं”

“मरासिम हैं या तेरी ज़ुल्फ़ों के पेंच-औ-खम
 जितना सुलझाऊं; उलझते ही जाते हैं”

"सर्द होते जा रहे हैं रिश्ते सारे
 आओ प्यार बुने कि गर्माहट हो"

किया है तंग "काफ़िया" ज़िन्दगी ने
"रदीफ़" लाख सम्भालें शेर नहीं बनता


-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया

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