Sunday 10 August, 2014

ग़ज़ल

तेरे बगैर एक पल सुकूं से नहीं गुज़रा
मैं जिस आज़ाब से गुज़रा;तू नहीं गुज़रा

तेरे इंतज़ार में गुज़ार दी ज़िंदगी मैंने
मैं दर पे मुंतज़िर रहा तू नहीं गुज़रा

बड़ी मुख़्तलिफ़ सी रहगुज़र है तेरी मुझसे
मेरी तरह दिल की राहों से तू नहीं गुज़रा

फूल कदमों तले आया मुझे रुकना ही पड़ा
जानिबे-मंज़िल रुक-रुक के तू नहीं गुज़रा

चांदनी में बना तू हमसफ़र मेरा लेकिन
कभी धूप में मेरे साथ तू नहीं गुज़रा

दिले-बोसीदा,चश्मे-पुरनम,आबला-ए-पा
मरासिमों के दश्त-औ-सहरा से तू नहीं गुज़रा

-हेमन्त रिछारिया

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