Sunday 24 August, 2014

गज़ल


हम क्या लाए थे; क्या हमारा था
बेखुदी का ये सब नज़ारा था

किसने सोचा था तकदीर रूठ जाएगी
कश्ती डूबी थी जहां पास में किनारा था

फिर से रौंदा गुल को ज़ालिम ने
अपने हाथों से मैंने इसे संवारा था

बस यही सोच के बंद कर ली आंखें
बिन तेरे जीना किसे गवारा था

-हेमन्त रिछारिया

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