तिश्नगी
Ghazals by Hemant Richhariya
Tuesday 20 May, 2008
रात भर दामिनी
रात भर दमिनी यूं दमकती रही
तिश्ना रूहें मिलन को तरसती रहीं
सोचता मैं रहा गुफ्तगू क्या करूं
वो भी चिलमन में बैठी लरज़ती रही
कुछ ऐसा लगा जब वो ज़ुल्फ़ें खुलीं
जैसे बागोंं में कलियां चटकती रहीं
जुदा हो के जागे ह्म शब तलक
वो भी बेचैन करवट बदलती रही
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment