Saturday 14 February, 2009

जिंदगी

जिंदगी से अब कोई प्यार ही नहीं
किसी खुशी पे एतबार ही नहीं

पलकें गिरा चिराग गुल कर दिए
अब किसी का इंतजार ही नहीं

पहलू में दर्दे-दिल लिए भटक रहा है नादां
बाजार में तेरे गम का खरीददार ही नहीं

दहलीज पे मयखानों की जाते हो रोजो-शब
चढकर जो उतर जाए वो खुमार ही नहीं

हमने दिल बिछाया था कदमों तले उनके
आसानी से वो कह चले मैं यार ही नहीं

सादगी से तेरे इश्क में जो मरकर चला गया
उस आशिक का तेरे शहर में मजार ही नहीं

झूठ के इस दौर में करता हूं बयाँ सच
लगता है कोई मुझसा गुनेहगार ही नहीं

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