यूं तो उम्र के कई वसंत देख चुका हूं
पर मैं उन पतझरों को नहीं भूला हूं
जो चाह कर भी शाम घर लौट ना सके
उन"सुबह के भूलों"का लंबा काफिला हूं
बेबाकी खामोशी का दामन ओढ़ लेती है
मैं हालाते-ज़िंदगी का वो फलसफा़ हूं
अभी से चैन की सांस न ले गाफ़िल
मैं तेरी जीस्त का अधूरा मश्गला हूं
पर मैं उन पतझरों को नहीं भूला हूं
जो चाह कर भी शाम घर लौट ना सके
उन"सुबह के भूलों"का लंबा काफिला हूं
बेबाकी खामोशी का दामन ओढ़ लेती है
मैं हालाते-ज़िंदगी का वो फलसफा़ हूं
अभी से चैन की सांस न ले गाफ़िल
मैं तेरी जीस्त का अधूरा मश्गला हूं
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