Saturday 23 February, 2013

अर्ज़ किया है...

"जुर्म-ए-मुहब्बत में वो थे बराबर के शरीक
 ए खुदा मिली है सिर्फ़ मुझे सजा क्यूं"
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"तुम मेरे नक्शे-पा मिटाते हुए चलना
 कोई और ना मेरे बाद कांटों से गुज़रे"
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"बस इतना सा है ज़िंदगानी का फ़लसफा़
 दो घड़ी रूक कोई मुसाफ़िर सुस्ता लिया"
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"लिबासों के मानिंद कौल बदलते हैं
 अब कोई ईमां का पक्का नहीं मिलता"
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"ठहाके;कहकहे; वो महफिलों का सिलसिला
 रौनकें रखतीं हैं मुझसे दो कदम का फ़ासला।"
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"तेरी ज़ुल्फ़ों के पेंचोखम सी मेरी ज़िंदगी
 जितना सुलझाऊं, उलझती जाती है।"
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"क्या करूंगा मैं लेकर तेरा सारा जहान
 साथी मेरे पास है दो आंसू इक मुस्कान"
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"आंखों में कतरा-ए-अश्क बचाए हुए रखना
 हादसों के शहर से गुज़रना अभी बाकी है।"
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"टूट ही जाएं कि ये नींद खत्म हो
 ख़्वाबों के चलते तो जागना मुश्किल।"
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" हाथ ताउम्र खाशाक से भरे रहे
 गौहर भी मिले तो यकीं नहीं होता"|

खाशाक=कूड़ा-करकर  गौहर=मोती
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"मुफ़लिसों की आरज़ू थी चांदनी बिखरे
 रसूख़दारों ने महे-कामिल कैद कर लिया"

महे-कामिल=पूर्ण चंद्र
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"हर कोई निगाहों से गिरा देता है
 अदने से अश्क की बिसात ही क्या"

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"जोड़-घटाना अशआरों में कीजिए
 इंसा तरमीम को राज़ी नहीं होते"
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"हमने ज़रा कहा तो तिलमिला गए
 लोगों को सच की आदत जो नहीं"

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"तुम छलकने का शिकवा ना करो
उसका पैमाना ही छोटा है"
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"खास होने की जद्दोजहद में लगे हैं सभी
 इतना आसां भी नहीं है आम होना"

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"कद का बातों पे हुआ कुछ ऐसा असर
 हमारी सब फिज़ूल, उनकी उसूल हुईं।"

-हेमन्त रिछारिया
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