"जुर्म-ए-मुहब्बत में वो थे बराबर के शरीक
ए खुदा मिली है सिर्फ़ मुझे सजा क्यूं"
***
"तुम मेरे नक्शे-पा मिटाते हुए चलना
कोई और ना मेरे बाद कांटों से गुज़रे"
***
"बस इतना सा है ज़िंदगानी का फ़लसफा़
दो घड़ी रूक कोई मुसाफ़िर सुस्ता लिया"
***
"लिबासों के मानिंद कौल बदलते हैं
अब कोई ईमां का पक्का नहीं मिलता"
***
"ठहाके;कहकहे; वो महफिलों का सिलसिला
रौनकें रखतीं हैं मुझसे दो कदम का फ़ासला।"
***
"तेरी ज़ुल्फ़ों के पेंचोखम सी मेरी ज़िंदगी
जितना सुलझाऊं, उलझती जाती है।"
***
"क्या करूंगा मैं लेकर तेरा सारा जहान
साथी मेरे पास है दो आंसू इक मुस्कान"
***
"आंखों में कतरा-ए-अश्क बचाए हुए रखना
हादसों के शहर से गुज़रना अभी बाकी है।"
***
"टूट ही जाएं कि ये नींद खत्म हो
ख़्वाबों के चलते तो जागना मुश्किल।"
***
" हाथ ताउम्र खाशाक से भरे रहे
गौहर भी मिले तो यकीं नहीं होता"|
खाशाक=कूड़ा-करकर गौहर=मोती
***
"मुफ़लिसों की आरज़ू थी चांदनी बिखरे
रसूख़दारों ने महे-कामिल कैद कर लिया"
महे-कामिल=पूर्ण चंद्र
***
"हर कोई निगाहों से गिरा देता है
अदने से अश्क की बिसात ही क्या"
***
"जोड़-घटाना अशआरों में कीजिए
इंसा तरमीम को राज़ी नहीं होते"
***
"हमने ज़रा कहा तो तिलमिला गए
लोगों को सच की आदत जो नहीं"
***
"तुम छलकने का शिकवा ना करो
उसका पैमाना ही छोटा है"
***
"खास होने की जद्दोजहद में लगे हैं सभी
इतना आसां भी नहीं है आम होना"
***
"कद का बातों पे हुआ कुछ ऐसा असर
हमारी सब फिज़ूल, उनकी उसूल हुईं।"
-हेमन्त रिछारिया
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ए खुदा मिली है सिर्फ़ मुझे सजा क्यूं"
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"तुम मेरे नक्शे-पा मिटाते हुए चलना
कोई और ना मेरे बाद कांटों से गुज़रे"
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"बस इतना सा है ज़िंदगानी का फ़लसफा़
दो घड़ी रूक कोई मुसाफ़िर सुस्ता लिया"
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"लिबासों के मानिंद कौल बदलते हैं
अब कोई ईमां का पक्का नहीं मिलता"
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"ठहाके;कहकहे; वो महफिलों का सिलसिला
रौनकें रखतीं हैं मुझसे दो कदम का फ़ासला।"
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"तेरी ज़ुल्फ़ों के पेंचोखम सी मेरी ज़िंदगी
जितना सुलझाऊं, उलझती जाती है।"
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"क्या करूंगा मैं लेकर तेरा सारा जहान
साथी मेरे पास है दो आंसू इक मुस्कान"
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"आंखों में कतरा-ए-अश्क बचाए हुए रखना
हादसों के शहर से गुज़रना अभी बाकी है।"
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"टूट ही जाएं कि ये नींद खत्म हो
ख़्वाबों के चलते तो जागना मुश्किल।"
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" हाथ ताउम्र खाशाक से भरे रहे
गौहर भी मिले तो यकीं नहीं होता"|
खाशाक=कूड़ा-करकर गौहर=मोती
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"मुफ़लिसों की आरज़ू थी चांदनी बिखरे
रसूख़दारों ने महे-कामिल कैद कर लिया"
महे-कामिल=पूर्ण चंद्र
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"हर कोई निगाहों से गिरा देता है
अदने से अश्क की बिसात ही क्या"
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"जोड़-घटाना अशआरों में कीजिए
इंसा तरमीम को राज़ी नहीं होते"
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"हमने ज़रा कहा तो तिलमिला गए
लोगों को सच की आदत जो नहीं"
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"तुम छलकने का शिकवा ना करो
उसका पैमाना ही छोटा है"
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"खास होने की जद्दोजहद में लगे हैं सभी
इतना आसां भी नहीं है आम होना"
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"कद का बातों पे हुआ कुछ ऐसा असर
हमारी सब फिज़ूल, उनकी उसूल हुईं।"
-हेमन्त रिछारिया
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