तेरी यादों को अपना बनाए बैठे हैं
हम निगाहों में सपना सजाए बैठे हैं
इन दर-औ-दीवारों की ज़रूरत हमें नहीं
हम तो तेरे दिल में आशियां बनाए बैठे हैं
वो भूले-भटके शायद इधर आ जाएं
यही सोच राह पे पलकें बिछाए बैठे हैं
अर्श के चांद से क्यूं रश्क हमें हो
हम तो तेरे जानिब नज़रें घुमाए बैठे हैं
मैं जानता हूं वो अपना वादा भूल चुके हैं
नाहक बारिश का बहाना बनाए बैठे हैं
इस धोखे में ना रहना ये गुलों का शहर है
शेख हम यहीं पे चोट खाए बैठे हैं
तेरा वस्ल ही होगा सफ़र का आखिरी मकाम
इस मुख़्तसर सी ज़िद में सांसे बचाए बैठे हैं
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