काश सुईयां घुमाने से वक्त गुज़र जाता
दो पल ही सही मेरा ये दर्द ठहर जाता
ज़ुल्फ़ों में अपनी तूने बांधे रखा वर्ना
दुनिया की हवाओं में ये गुल बिखर जाता
आप जो हमसफ़र बन गए होते
दूर तक फिर अपना सफ़र जाता
तूने अच्छा किया जो पहलू में जगह दी
ना जाने ये इश्क का मारा किधर जाता
साकी तूने कितनों का छीना सुकूं
मयकदा ना होता मैं अपने घर जाता
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