Wednesday 11 January, 2012

खिज़ाओं के बाद ना मौसम-ए-बहार आया

खिज़ाओं के बाद ना मौसम-ए-बहार आया
तमाम उम्र गुज़री ना दिल को करार आया

तुझपे जां निसारी की कसम खाई थी मैंने
मेरी कज़ा के बाद भी तुझे ना एतबार आया

कुछ इस तरह से किया उसने बंटवारा
अपने हिस्से में बस इंतज़ार आया

गुलों के साथ तूने शौकीन-ए-इत्र बनाए
ना रहम तुझे ए परवरदिगार आया

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