क्या कहूं आपसे किन उलझनों में हूं
ज़िंदगी की अपनी परेशानियां हैं
दरे-जानां;तक जाना, इतना आसां नहीं
रहगुज़र में होती बड़ी निगरानियां हैं
मेरे सर इश्क का इल्ज़ाम न दीजिए
शबाब की अपनी नादानियां हैं
हमने हाले-दिल सुनाया था उनको
वो कहने लगे अच्छी कहानियां हैं
लगता इसे किसी सिकंदर की नज़र लगी
शहर में फैली हर सूं वीरानियां हैं
पूछते हो घर मेरा आबाद क्यूं नहीं
साहब सब आपकी मेहरबानियां हैं
ज़िंदगी की अपनी परेशानियां हैं
दरे-जानां;तक जाना, इतना आसां नहीं
रहगुज़र में होती बड़ी निगरानियां हैं
मेरे सर इश्क का इल्ज़ाम न दीजिए
शबाब की अपनी नादानियां हैं
हमने हाले-दिल सुनाया था उनको
वो कहने लगे अच्छी कहानियां हैं
लगता इसे किसी सिकंदर की नज़र लगी
शहर में फैली हर सूं वीरानियां हैं
पूछते हो घर मेरा आबाद क्यूं नहीं
साहब सब आपकी मेहरबानियां हैं
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