Wednesday 11 January, 2012

ज़िंदगी की अपनी परेशानियां हैं

क्या कहूं आपसे किन उलझनों में हूं
ज़िंदगी की अपनी परेशानियां हैं

दरे-जानां;तक जाना, इतना आसां नहीं
रहगुज़र में होती बड़ी निगरानियां हैं

मेरे सर इश्क का इल्ज़ाम न दीजिए
शबाब की अपनी नादानियां हैं

हमने हाले-दिल सुनाया था उनको
वो कहने लगे अच्छी कहानियां हैं

लगता इसे किसी सिकंदर की नज़र लगी
शहर में फैली हर सूं वीरानियां हैं

पूछते हो घर मेरा आबाद क्यूं नहीं
साहब सब आपकी मेहरबानियां हैं

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