Thursday 5 January, 2012

ग़ज़ल

ज़िंदगी भर सुलगते हैं जज़्बात हौले-हौले
आते हैं प्यार के ख़्यालात हौले-हौले

भरी बज़्म के शोर को कुछ कम तो करो
हम सुनाते हैं महफिल में नगमात हौले-हौले

वारदात तो हो चुकी है कब की शहर में
होगी सबको सच की मालूमात हौले-हौले

कच्चे धागों के मानिंद मरासिम सारे
परवान चढ़ते हैं ताल्लुकात हौले-हौले

जब तक ज़िंदा थे कुछ भी न कहा
बाद मरने के दिए बयानात हौले-हौले

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