Wednesday 11 January, 2012

चांदनी रात में मेरे ख़्वाबों ने शक्ल पाई है

चांदनी रात में मेरे ख़्वाबों ने शक्ल पाई है
चांद के अक्स में तेरी सूरत नज़र आई है

बयार के चलते यूं लचकी शाखे-गुल
मुझे लगा मेरे छूने से तू शरमाई है

ए चांद ज़रा छिप जा बदली की ओट में
बाद मुद्दतों के ये शब-ए-वस्ल आई है

जो नूर था आसमां का अब वही पहलू में है
दिल ने अब है माना होती क्या खुदाई है

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