चांदनी रात में मेरे ख़्वाबों ने शक्ल पाई है
चांद के अक्स में तेरी सूरत नज़र आई है
बयार के चलते यूं लचकी शाखे-गुल
मुझे लगा मेरे छूने से तू शरमाई है
ए चांद ज़रा छिप जा बदली की ओट में
बाद मुद्दतों के ये शब-ए-वस्ल आई है
जो नूर था आसमां का अब वही पहलू में है
दिल ने अब है माना होती क्या खुदाई है
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